हरिशंकर तिवारी का परिवार सपा में होगा शामिल, BJP-BSP की बढ़ेगी टेंशन
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लखनऊ। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भाजपा-बसपा को रविवार को बड़ा झटका देने वाले हैं। पूर्वांचल के कद्दावर नेता माने जाने वाले पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के पुत्र भीष्म शंकर तिवारी, विधायक विनय शंकर तिवारी व पूर्व एमएलसी गणेश शंकर पांडेय रविवार को विधिवत सपा में शामिल हो जाएंगे। इसके अलावा कुछ भाजपा विधायक भी सपा का दामन थाम सकते हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने हरिशंकर तिवारी के पूरे कुनबे (भाई कुशल तिवारी और रिश्तेदार गणेश पांडेय सहित) पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इस परिवार के सपा में शामिल होना बसपा के साथ-साथ भाजपा के लिए भी चिंता का विषय हो सकता है। यूपी की मौजूदा राजनीति में काफी समय से यह परिवार चर्चा में नहीं रहा है लेकिन पूर्वांचल के जातिगत समीकरणों में इसकी दखल से कोई भी इनकार नहीं करता। यहाँ भी पढ़े: अखिलेश के साथ होंगी अनुप्रिया पटेल , बीजेपी को लगेगा झटका: जाने विस्तार से
80 के दशक में हरिशंकर तिवारी और वीरेन्द्र प्रताप शाही के बीच वर्चस्व की जंग ने ब्राह्मण बनाम ठाकुर का रूप ले लिया था। माना जाता है कि इन्हीं दो बाहुबलियों के विधायक बनने के बाद यूपी की सियासत में बाहुबलियों की एंट्री शुरू हुई। हरिशंकर तिवारी चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से लगातार छह बार विधायक रहे। कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और मुलायम सिंह यादव की सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे लेकिन 2007 के चुनाव में बसपा के राजेश त्रिपाठी ने उन्हें चुनाव हरा दिया। इसके बाद भी यूपी की सियासत में तिवारी परिवार का रसूख कम नहीं हुआ। उनके बड़े बेटे कुशल तिवारी संतकबीरनगर से दो बार सांसद रहे तो छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी चिल्लूपार सीट से विधायक हैं। जबकि हरिशंकर तिवारी के भांजे गणेश शंकर पांडेय बसपा सरकार में विधान परिषद सभापति रहे हैं। अब कहा जा रहा है कि ये सभी नेता सपा में शामिल हो सकते हैं।
यूपी की ब्राह्मण सियासत बढ़ाएगी बीजेपी की चिंता
तिवारी परिवार के सपा में आने से बसपा के साथ-साथ भाजपा के लिए भी चिंता का विषय हो सकता है। इसे जहां बसपा की सोशल इंजीनियरिंग को झटका माना जा रहा है वहीं राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में ब्राह्मणों की नाराजगी भाजपा के लिए भी कुछ सीटों पर मुश्किल खड़ी कर सकती है। सपा-बसपा-कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को लुभाने में जुटे हैं। भाजपा का कोर वोटर माना जाने वाला यह वर्ग यदि उससे दूर जाने के साथ ही किसी एक पार्टी के साथ लामबंद होता है तो यह परेशानी का कारण बन सकता है।
डेढ़ दशक से बसपा में थे विनय, कुशल और गणेश
पूर्व मंत्री पंडित हरिशंकर तिवारी दोनों बेटे व भांजे पिछले डेढ़ दशक से बसपा में थे। जुलाई 2007 में उन्होंने बसपा ज्वाइन किया था। हालाकि पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी ने कभी बसपा की सदस्यता ग्रहण नहीं किया। वह निर्दलीय ही चुनाव लड़ते रहे। विनय शंकर तिवारी ने बसपा के टिकट पर बलिया लोकसभा उप चुनाव से राजनीत में कदम रखा। वहां से चुनाव हार गए। वहीं 2008 में खलीलाबाद लोकसभा उप चुनाव में उनके बड़े भाई कुशल तिवारी बसपा से मैदान में उतरे और सांसद बने। 2009 में दोनों भाइयों को बसपा ने एक बार फिर प्रत्याशी बनाया। यहाँ भी पढ़े:कोरोना के नए रूप ओमिक्रॉन से कर्नाटक में हड़कंप, CM बोम्मई ने बुलाई हाई-लेवल बैठक
विनय शंकर गोरखपुर लोकसभा से तो वहीं खलीलाबाद से कुशल तथा महराजगंज लोकसभा सीट से गणेश शंकर पांडेय चुनाव मैदान में उतरे। इनमे कुशल अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए तो वहीं बाकी दोनों लोग चुनाव हार गए । 2010 में गोरखपुर महराजगंज स्थानीय निकाय चुनाव में बसपा से गणेश शंकर पांडेय ने जीत हासिल की। उसके बाद उन्हें विधान परिषद का सभापति निर्वाचित किया गया। 2012 में विनय को बसपा ने सिद्धार्थनगर के बांसी से प्रत्याशी बनाया हालांकि वह चुनाव जीत नहीं पाए। चिल्लूपार विधानसभा से 2017 में चुनाव लड़ने के बाद विनय विधायक बने। जबकि गणेश शंकर पांडेय 2017 में बसपा से पनियरा से चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं मिली।